| 11. | Contact : Mainline , PO Box 72 , Manchester , M15 5NW , Tel : 2279299 सम्पर्क : ंअइन्लिने , फ् औ भोद्72 , ंअन्च्हेस्टेर् , ं15 5ण्थ् , ठेल् : 2279299
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| 12. | This project is based on Moss Side. मेनलाईन Mainline
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| 13. | And Israel is the Little Satan, serving as Empire's sinister ally - or maybe the Jewish state is really the master ? From World Social Forum meetings in Brazil to the United Nations anti-racism conference in Durban and from mainline churches to NGOs , Zionism is represented as absolute evil. Why Israel? Beyond not-so-subtle antisemitism, it alone of Western countries lives under a barrage of constant threats, which in turn compel it to engage in constant wars. “Stripped of all context,” Sternberg notes, “Israel's actions fit the needed image of aggressor.” अभी आरबिस के नवीनतम अंक में बफालो विश्वविद्यालय के अरनेस्ट स्टेनबर्ग ने अपने आलेख में इस विषय के उत्तर दिये हैं जो निश्चय ही आंखें खोल देने वाला है। “Purifying the World: What the New Radical Ideology Stands For. । वे अपनी बात आरम्भ करते हुए वर्तमान अतिवामपंथ के सम्बन्ध में उन तथ्यों का चित्रण करते हैं जिनका वह विरोध करता है ( यह नरम वामपंथ के विपरीत है) और जो यह चाहता है।
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| 14. | The Muslim population in this country is not like any other group, for it includes within it a substantial body of people-many times more numerous than the agents of Osama bin Ladin-who share with the suicide hijackers a hatred of the United States and the desire, ultimately, to transform it into a nation living under the strictures of militant Islam. The receptivity indeed was greater, but still the idea of an Islamist takeover remains unrecognized in establishment circles - the U.S. government, the old media, the universities, the mainline churches. अमेरिका से घृणा की भावना रखते हुए उसे ऐसे देश के रुप में बदलाना चाहते हैं जो कट्टरपंथी इस्लाम के निर्देशों के अधीन रहे . इस विषय की ग्राह्यता 11 सितंबर की घटना के बाद बढ़ी जरुर है लेकिन अब भी इस्लामवादियों द्वारा व्यवस्था को अपने हाथ में लेने की उनकी मंशा को अमेरिकी तंत्र जैसे अमेरिकी शासन , पुराना मीडिया , विश्वविद्यालय और मूलधारा के चर्च मान्यता देते नहीं दिख रहे हैं.
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| 15. | The enemies of Israel divide into two main camps: the Left and the Muslims, with the far Right a minor third element. The Left includes a rabid edge (International ANSWER, Noam Chomsky) and a more polite centre (United Nations General Assembly, Canada's Liberal Party, the mainstream media, mainline churches, school textbooks). In the final analysis, however, the Left serves less as a force in its own right than as an auxiliary for the primary anti-Zionist actor, which is the Muslim population. This latter, in turn, can be divided into three distinct groupings. इजरायल के शत्रु दो मुख्य शिविरों में विभाजित हैं- वामपंथी और मुसलमान और सुदूर दक्षिण एक मामूली तीसरे तत्व हैं। वामपंथियों में आक्रामक ( अंतरराष्ट्रीय उत्तर नोम चोमस्की) और अधिक विनम्र केन्द्रीय ( संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा, कनाडा की लिबरल पार्टी, मुख्यधारा का मीडिया, प्रमुख चर्च , विद्यालय के पाठ्यक्रम)। अंतिम विश्लेषण में वामपंथी अपने अधिकारों की सीमा में प्राथमिक रूप से इजरायल विरोधी अभिनेताओं जो कि मुस्लिम जनसंख्या है के लिये एक पूरक का कार्य करते हैं। बाद वाले इस शिविर को फिर से तीन अलग- अलग खेमों में बांटा जा सकता है।
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| 16. | One factor that could help prevent this dismal outcome would be for mainline Protestant churches to speak out against Palestinian Muslims for tormenting and expelling Palestinian Christians. To date, unfortunately, the Episcopalian, Evangelical Lutheran, Methodist, and Presbyterian churches, as well as the United Church of Christ, have ignored the problem. Related Topics: Anti-Christianism , Palestinians receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Comment on this item एक तरीका यह हो सकता है कि मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंट चर्च फिलीस्तीनी मुस्लिमों द्वारा फिलीस्तीनी ईसाईयों को निकालने और प्रताड़ित करने का विरोध करे . दुर्भाग्यवश एपिस्कोपालियन , एवेंन्जेलिकल लूथरन , मैथोडिस्ट , प्रेसबेटेरियन् चर्चों और यूनाईटेड चर्च ऑफ क्राईस्ट द्वारा इस समस्या की उपेक्षा हो रही है. इन चर्चों का ध्यान इस समस्या के बजाए इजरायल के नैतिक पराभव और यहां से अपना निवेश हटाने पर अधिक रहता है . इजरायल के प्रति उनका इतना लगाव है कि वे अपने जन्मस्थान में ही अंतिम सांसे गिन रही ईसाइयत के प्रति ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. आश्चर्य है.. आखिर वे कैसे जागेंगे ?.
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