| 22. | In an odd parallel, Islam claims to replace Christianity as the final revelation from God, and Communism claims to succeed capitalism as the final stage of economic evolution. The West infuriates both its would-be successors with its continued wealth and power. They respond by presenting the West with its most sustained opposition. Just as earlier in this century they led the attack on European imperialism, today the Soviet Union and Moslem members of the Organization of Petroleum Exporting Countries are mounting the main challenge to Western political and economic power. Both have revolutionary temperaments; claiming a monopoly on truth, why should either allow imperfect or evil ways to exist for another day? Each propagates its message with rhetorical shrillness, indoctrination, biased law courts and firing squads. Both tend not to tolerate dissent and regard nonbelievers with suspicion, emphasizing the deep gulf between themselves and outsiders. एक जटिल समानता है कि इस्लाम ईसाइयत के स्थान पर इस्लाम को ईश्वर के अंतिम सत्य के रूप में स्थापित करना चाहता है तो कम्युनिज्म पूँजीवाद के स्थान पर स्वयं को अंतिम आर्थिक विकास सिद्ध करना चाहता है। पश्चिम के दोनों ही सम्भावित उत्तराधिकारी इसके धन और शक्ति को लेकर इस पर कुपित हैं। इसकी प्रतिक्रिया में वे पश्चिम के विरुद्ध प्रतिरोध जारी रख रहे हैं। जिस प्रकार इस शताब्दी के आरम्भ में उन्होंने यूरोपियन साम्राज्यवाद के विरुद्ध आक्रमण का नेतृत्व किया , आज सोवियत संघ और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के मुस्लिम सदस्य पश्चिमी देशों की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को चुनौती दे रहे हैं। दोनों का क्रांतिकारी स्वभाव है और दोनों ही सत्य पर एकाधिकार का दावा करते हैं और इसलिये अशुद्ध और दुष्ट मार्ग को अगले दिन के लिये क्यों अस्तित्व में रहने दिया जाये? दोनों ही बढ चढकर , पूरी तरह अपने सिद्धांत में पारंगत कर , पूर्वाग्रहजनित कानूनी न्यायालय और दूसरों पर गोली चलाने वाली टुकडी के सहारे अपनी विचारधारा का प्रचार करते हैं। दोनों ही विरोधी स्वर को सहन नहीं करते और विचारों में विश्वास न करने वालों को शंका की दृष्टि से देखते हैं जिससे कि उनमें और बाहरवालों में गहरी अविश्वास की खाई बन जाती है।
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| 23. | Looking back, Al-Qaeda's role seems to divide into two: Some attacks (Somalia, East African embassies, the USS Cole, 9/11, perhaps the recent Riyadh bombings) it ran with its own staff, while depending on others for the key ingredients - energy, commitment and self-sacrifice. In most operations (the Millennial plot, Strait of Gibraltar, London ricin, perhaps the recent Casablanca bombings), Al-Qaeda provided some direction, funding and training, but left the execution to others. In Newsweek 's colorful formulation, it “has always been more of a pirate federation than a Stalinist top-down organization.” The ultimate worry is not Al-Qaeda but a diffuse, global militant Islamic ideology that predates Al-Qaeda's creation, is locally organized and constantly recruits new volunteers. Even the usually maladroit Syrian president, Bashar al-Assad, understands this: “We blame everything on Al-Qaeda, but what happened is more dangerous than bin Laden or Al-Qaeda. . . . The issue is ideology, it's not an issue of organizations.” Bin Laden concurs, noting that his own presence is unnecessary for mounting new acts of violence. “Regardless if Osama is killed or survives,” he said of himself, “the awakening has started.” Burke proposes replacing the concept of a structured, hierarchical Al-Qaeda organization with a more amorphous “Al-Qaeda movement.” When law enforcement and intelligence agencies adopt this more flexible understanding, they can better do battle against militant Islamic terrorism. Related Topics: Radical Islam , Terrorism receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Comment on this item पीछे मुड़कर देखें तो अल-कायदा की भूमिका दो भागों में वभाजित हो गई है। कुछ आक्रमण (सोमालिया ,पूर्वी अफ्रीका दूतावास, यू.एस.एस कोल, 11 सितम्बर 2001 और सम्भवत: रियाद बम विस्फोट) इसने स्वयं किये जबकि ऊर्जा प्रतिबद्धता और आत्म बलिदान के लिए दूसरों पर निर्भर रहा। अधिकांश अपरेशनों में (मिलेनियन षड़यन्त्र जिब्राल्टर जल्डमरू लन्दन और अभी हाल का कैसाब्लान्का बम विस्फोट) अलकायदा ने कुछ निर्देश दिया,आर्थिक सहायता और प्रशिक्षण दिया परन्तु इसे अन्जाम देने का कार्य औरों पर छोड़ दिया। न्यूजवीक की रंगीन शब्दावली में “ यह समद्री डाकुओं के महासंघ के रूप में कार्य करता रहा न कि स्टालिनवादी ऊपर से नीचे क्रम में ''। अन्ततोगत्वा जो चिन्ता है वह अलकायदा को लेकर नहीं है परन्तु विश्व स्तर पर उग्रवादी इस्लामी विचारधारा की है जो अलकायदा के निर्माण से पहले की है और वह स्थान - स्थान पर संगठित है और निरन्तर नई भर्ती होती जा रही है, यहाँ तक की सीरिया के संकीर्ण राष्ट्रपति बशर अल असद भी इसे समझते हैं “ हम सभी चीजों के लिए अलकायदा को दोषी ठहराते हैं, परन्तु जो घटित हो रहा है वह बिन लादेन और अल-कायदा से अधिक खतरनाक हैं - मुद्दा विचारधारा का है यह मुद्दा संगठनों का नहीं है ''। यह जानते हुए कि हिंसा के नये कृत्यों को अन्जाम देने के लिए बिन लादेन की उपस्थिति आवश्यक नहीं है उन्होंने कहा, यह महत्वहीन है कि ओसामा मारा जाता है या बचता है '' उन्होंने स्वयं से कहा “ जागने का समय आरम्भ हो गया है '' बर्क ने प्रस्तावित किया है कि एक सुगठित सोपानबद्ध संगठन के स्थान पर अलकायदा आकार विहीन आन्दोलन बन चुका। जब कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेन्सियों इस लचीली बात को समझ सकेंगी तो वे कहीं बेहतर ढ़ंग से उग्रवादी इस्लामी आतंकवादी से लड़ सकेंगी।
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