हाथीपाँव या फाइलेरिया (Elephantiasis or Filaria) नामक रोग का सामान्य परिचय दें। इस रोग के लक्षणों, बचाव के उपायों तथा उपचार का विवरण दीजिए।

General Awareness General QA . 2 years ago

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भारत के विभिन्न भागों में पाया जाने वाला एक संक्रामक रोग हाथीपाँव भी है। इस रोग का यह नाम इसके लक्षणों को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। वैसे इसे फीलपाँव भी कहा जाता है। इसका चिकित्सीय नाम फाइलेरिया (Filaria) है। इस रोग को हाथीपाँव कहने का मुख्य कारण यह है कि इस , रोग की दशा में व्यक्ति के हाथ या पाँव बहुत अधिक सूज जाते हैं।

फाइलेरिया नामक रोग एक कृमि जनित रोग है। यह कृमि (Worm) व्यक्ति के शरीर के लसिका तन्त्र की नलिकाओं में पहुँचकर उन्हें बन्द कर देते हैं। इस रोग को उत्पन्न करने वाला कृमि फाइलेरिया बैक्रॉफ्टी (Filaria bancrofti) है। इस कृमि को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है। शरीर में ये कृमि स्थायी रूप से लसिका वाहिनियों में रहते हैं, परन्तु ये निश्चित समय पर प्रायः रात के समय रक्त में प्रवेश करके शरीर के अन्य अंगों में भी फैल जाते हैं। ये कृमि शरीर की नसों में सूजन उत्पन्न करते हैं। इस प्रकार से उत्पन्न सूजन प्रायः घटती-बढ़ती रहती है। परन्तु जब रोग के कृमि लसिका तन्त्र की नलियों के अन्दर मर जाते हैं तब लसिका वाहिनियों का मार्ग सदा के लिए अवरुद्ध हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के उस स्थान की त्वचा मोटी तथा कड़ी हो जाती है। इस प्रकार से लसिका वाहिनियों के बन्द हो जाने पर उनके खोलने के लिए कोई औषधि सहायक नहीं होती। ऐसे में शल्य चिकित्सा से ही समस्या को हल किया जा सकता है।

फाइलेरिया रोग का फैलना:
इस रोग को फैलाने का कार्य क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किया जाता है। रोग का कारण एक परजीवी माइक्रोफिलारे होता है। सामान्य रूप से जब किसी संक्रमित व्यक्ति को मच्छर काटता है तब मच्छर के शरीर में यह परजीवी प्रवेश कर जाता है तथा वहाँ रहकर बड़ी तेजी से अपनी वृद्धि करता है। इसके उपरान्त जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तब वह व्यक्ति भी संक्रमित होकर रोगग्रस्त हो जाता है। माइक्रोफिलारे के अतिरिक्त एक अन्य परजीवी भी फाइलेरिया रोग उत्पन्न करता है। इस परजीवी को बूगिया मलाई कहते हैं। यह मानसोनिया (मानसोनियोजित एबूलीफेरा) द्वारा फैलता है। इस प्रकार का संक्रमण ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक पाया जाता है।

फाइलेरिया के लक्षण:
फाइलेरिया या हाथीपाँव के कुछ मुख्य लक्षण निम्नवर्णित हैं
⦁    ठण्ड या कँपकँपी के साथ ज्वर होना।।
⦁    गले में सूजन आ जाना।
⦁    रोग के बढ़ने पर एक या अधिक हाथ तथा पैरों में सूजन आ जाना। यह सूजन पैरों में प्रायः अधिक होती है। इसीलिए इस रोग को हाथीपाँव कहा जाता है। ।
⦁    इस रोग में गुप्तांग तथा जाँघों के बीच गिल्टी बन जाती है, जिसमें दर्द होता है। पुरुषों में अंडकोष में भी सूजन आ जाती है जिसे हाइड्रोसिल कहते हैं।
⦁    रोगी के पैरों तथा हाथों की लसिका वाहिकाओं का रंग लाल होने लगता है।

बचाव के उपाय:
फाइलेरिया एक गम्भीर रोग है। इस रोग से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए
⦁    हाथीपाँव या फाइलेरिया से बचाव का सबसे अधिक कारगर उपाय है–स्वयं को मच्छरों से बचाना। ये मच्छर सुबह एवं शाम के समय अधिक सक्रिय होते हैं; अतः इस समय विशेष सचेत रहना
आवश्यक होता है।
⦁     यदि किसी क्षेत्र में फाइलेरिया का प्रकोप हो तो वहाँ विशेष सावधानी की आवश्यकता होती .
⦁    मच्छरों से बचाव के लिए ऐसे वस्त्र धारण करने चाहिए जिनसे हाथ-पाँव अच्छी तरह से ढक जायें।।
⦁    मच्छरों से बचाव के लिए सुझाव दिया जाता है कि व्यक्ति को पेमेथ्रिन-युक्त कपड़ों को धारण करना चाहिए। पेर्मेथ्रिने एक सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है। ऐसे वस्त्र बाजार में उपलब्ध होते हैं।
⦁    मच्छरों के उन्मूलन के सभी उपाय किये जाने चाहिए।
उपचार के उपाय:
फाइलेरिया या हाथीपाँव एक गम्भीर रोग है। इस रोग के कारण जहाँ एक ओर शारीरिक विकलांगता आती है वहीं साथ-ही-साथ मानसिक स्थिति भी बिगड़ जाती है। इससे व्यक्ति आर्थिक संकट का भी शिकार हो जाता है। रोग के व्यवस्थित या चिकित्सीय उपचार के साथ-ही-साथ निम्नलिखित घरेलू उपचार भी किये जा सकते हैं
(1) लौंग का इस्तेमाल:
लौंग में कुछ ऐसे एंजाइम होते हैं जो फाइलेरिया के परजीवी को नष्ट करने की शक्ति रखते हैं। अत: लौंग से तैयार चाय का सेवन करना चाहिए।
(2) काले अखरोट का तेल:
अखरोट के तेल में कुछ ऐसे गुण पाये जाते हैं जो रक्त में पाये जाने वाले कृमियों को नष्ट करने की क्षमता रखते हैं। अत: एक कप गर्म पानी में तीन-चार बूंद काले अखरोट का तेल डालकर पीने से इस रोग के निवारण में सहायता मिलती है।
(3) आँवला का उपयोग:
आँवला विटामिन ‘सी’ का सर्वोत्तम स्रोत है। इसमें एन्थेलमिर्थिक भी होता है जो घाव को शीघ्र भरने में सहायक होता है। अतः आँवले के सेवन से फाइलेरिया को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।
(4) अदरक:
यदि सूखे अदरक के पाउडर अर्थात् सोंठ को गरम पानी में घोलकर प्रतिदिन सेवन करें तो फाइलेरिया रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। वास्तव में अदरक में फाइलेरिया के पुरजीवी को नष्ट करने की क्षमता होती है।
(5) अश्वगंधा:
अश्वगंधा एक पौधा होता है। इसके इस्तेमाल से भी फाइलेरिया को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(6) शंखपुष्पी:
शंखपुष्पी की जड़ को गरम पानी के साथ पीसकर पेस्ट तैयार किया जाता है। इस पेस्ट को शरीर के प्रभावित स्थान पर लगाने से सूजन घट जाती है।
(7) कुल्ठी:
कुल्ठी या हॉर्सग्रास में चींटियों द्वारा निकाली गई मिट्टी तथा अण्डे की सफेदी मिलाकर सूजन वाले अंग पर प्रतिदिन लगाने से सूजन घटती है।
(8) अगर:
अगर को पानी के साथ मिलाकर लेप तैयार किया जाता है। इस लेप को प्रतिदिन प्रभावित स्थान पर लगाने से सूजन कम होती है, रोग के कृमि मर जाते हैं तथा घाव शीघ्र भरने लगते हैं
(9) रॉक साल्ट:
रॉक साल्ट, शंखपुष्पी एवं सोंठ के पाउडर को मिलाकर तैयार किए गए मिश्रण की एक चुटकी को प्रतिदिन गरम पानी के साथ सेवन करने से रोग नियन्त्रित हो जाता है।
(10) ब्राह्मी:
ब्राह्मी को पानी के साथ पीसकर तैयार लेप को प्रतिदिन प्रभावित अंग पर लगाने से सूजन घट जाती है।

Posted on 06 Oct 2022, this text provides information on General Awareness related to General QA. Please note that while accuracy is prioritized, the data presented might not be entirely correct or up-to-date. This information is offered for general knowledge and informational purposes only, and should not be considered as a substitute for professional advice.

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