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LoginHindi Secondary School in Hindi . 10 months ago
मिथिलांचरण की बात है. वहां विशेश्वर नामक एक मंत्री था. वह दानी के साथ ही दयालु भी था.प्रतिदिन वह राजा से कंगालों को भोजन दिलवाता था. जो आलसी थे, उन्हें भोजन के साथ रहने का स्थान भी दिलवाता. यहां तक कि उसने एक आलस खाना ही खोल रखा था.मंत्री समझता था कि जो आलसी है वह भिखारियों से भी दयनीय है. आलसी आदमी भूख से व्याकुल होने पर भी कुछ काम नहीं करता करना चाहता.आलसी अपने को अपने मन से ही सुखी समझता है. उनका मन कहीं और होता है और देह कहीं और. ये मन से कुछ भी करना नहीं चाहते. ये मुंह से बोलना तक नहीं चाहते. जो आलस्य में पड़े रहते हैं, वे नींद में पड़ा रहना पसंद करते हैं. मालूम पड़ता है, नींद ही उनकी भूख मिटाती है.मंत्री यही सोचकर आलसियों को भोजन और आश्रय दोनों दिलवाता था.आलसियों को बिना कुछ किये आराम से सब कुछ मिलने लगा. मनचाहा भोजन और आश्रय मिलने से बहुत से लोगों ने काम करना बंद कर दिया. काम करने वाले कुछ आलसी आदमी भी वहां जमा होने लगे.कहावत है कि आदमी को बिना काम किए ही जहां आराम मिलता है, वहां रहना पसंद करते हैं.आलसियों के सुखचैन को कुछ चालाक लोगों ने देखा. वे बनावटी आलसी बन गये. आलस्यशाला से भोजन आश्रय पाने लगे.ऐसा होने से आलस्यशाला का खर्चा काफी बढ़ गया. बढ़ते खर्च देखकर कर्मचारियों को चिंता हुई. कर्मचारी तो राजा के आदेशपालक थे. वे कर भी क्या सकते थे. किंतु कुछ उपाय ढूंढना ही होगा. कारण कि जो आलसी नहीं है, वे भी नाजायज फायदा उठा रहे हैं.कर्मचारियों ने विचार किया कि इस प्रकार से राज्य संपत्ति नष्ट नहीं होने दिया जाए. ऐसा होने से 1 दिन ऐसा आ सकता है जब खजाना खत्म हो जाएगा.राज्य कर्मचारियों ने एक काम किया. छिपकर आलस्यखाने में आग लगा दी. आग लगाकर वे तमाशा देखने लगे.देखते ही देखते आलस्यसाला को आग निगल गई. आग लगते ही हालत बदल गई. जो जानबूझकर आलसी बने हुए थे, वे वहां से निकल भागे. जिन्होंने आलस्य का ढोंग रचा था वह भी भाग चले.बच गए चार. वे सही अर्थ में आलसी थे. वे वहीं लेते रह गए.उनमें से एक ने मुंह ढक कर कहा, इस शोरगुल की भला जरूरत ही क्या है ?दूसरे ने कहा लगता है, यहां आग लगी है.तीसरे ने विचित्र बात कही, लगता है यहां कोई दयालु आदमी नहीं है. अगर ऐसा होता तो वह कपड़े भिगो कर हमें ढक देता. चटाई से भी तो वह हमें ढक सकता था.चौथे को गुस्सा आ गया. उसने गुस्से में ही कहा, धिक्कार है तुम लोगों को. क्या इतना बोलने से तुम लोगों का मुंह नहीं दुखता. भगवान के लिए अभी से चुप रहो.चारों आलसी आपस में बातचीत कर रहे थे. इतने में आग की लपट वहां तक पहुंच गयी. चिंगारियां उनके शरीर पर गिरने लगे.राज अधिकारियों से रहा नहीं गया. वे भीतर घुस पड़े. सभी आलसियों की बाल पकड़ी. उन्हें बाहर धकेल दिया. उनकी दशा देखते ही बनती थी.राजा तक यह बात पहुंचाई गई. राजा ने इसकी जांच की. वास्तव में वे बड़े आलसी थे.राजा की ओर से उन्हें पहले से भी अधिक सुविधा दी जाने लगी. उन लोगों ने अपने आलस्य का लाभ उठाया.Hope this HELPS you...
Posted on 05 Sep 2024, this text provides information on Hindi related to Secondary School in Hindi. Please note that while accuracy is prioritized, the data presented might not be entirely correct or up-to-date. This information is offered for general knowledge and informational purposes only, and should not be considered as a substitute for professional advice.
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