| 1. | During the hearing , the appellant can be represented by his or her authorised representative , who can be a company secretary , a chartered accountant or an advocate . सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व उसका प्राधिकृत प्रतिनिधि कर सकता है जो कंपनी सचिव , चार्टरित लेखाकार या अधिवक़्ता हो सकता है .
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| 2. | However , the Act provides that the appeal will not be entertained unless the appellant has deposited with the Tribunal a sum of Rs 25,000 or 50 per cent of the amount awarded , whichever is less . किंतु अधिनियम में यह उपबंध है कि जब तक अपीलकर्ता अधिकरण में 25,000 रु . अथवा अधिनिर्णीत राशि का 50 प्रतिशत , जो भी कम हो , जमा न करा दे तब तक उसकी अपील विचारार्थ स्वीकार नहीं की जाएगी .
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| 3. | In his statement before the Sessions Court , the appellant prays in aid , the works of Hume and Behtham , which he claims , are authorities for the proposition that if is permissible to engage in an attempt to overthrow a government by vio-lerice . सेशन अदालत के सामने अपने बयान में अपीलकर्ता ने हयूम और बेंथम के सिद्धांतों का सहारा लिया था और यह दावा किया था कि वे इस बात के प्रमाण हैं कि हिंसा के माध्यम से एक सरकार को हटाने का प्रयास करना स्वीकृत है .
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| 4. | Once the appeal has been received , the Tribunal may -LRB- after it has given an opportunity to the appellant to be heard if they desire it , and after making such further enquiry as it ' deems fit -RRB- / confirm , modify or set aside the order appealed against . अपील फाइल हो जाने पर , अधिकरण अपीलाधीन आदेश की पुष्टि कर सकता है अथवा उसे उपांतरित या अपास्त कर सकता है ( किंतु यदि अपीलकर्ता चाहे तो उसे सुनवाई का अवसर देने और आगे ऐसी जांच करने के पश्चात जैसी वह ठीक समझे ) .
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| 5. | With the knowledge that the appellant considered that he could morally resort to force , it is impossible to put an innocent interpretation on his actions and to hold that he was engaged between the years 1921 and 1924 in peaceful legitimate political propaganda . . . इस जानकारी के बाद , कि अपीलकर्ता बल-प्रयोग को नैतिक मानता था , यह संभव नहीं है कि उसके क्रियाकलापों को निष्कपट माना जाये या यह समझा जाये कि 1921 से 1924 के दौरान वह शांतिपूर्ण न्यायसम्मत राजनीतिक प्रचार में लगा था . . .. ”
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| 6. | Having decided to go beyond the stage of academic discussion , it was necessary that the appellant should have regard not merely to the attractive doctrines of political philosophers but to mundane matters of fact and provisions of the Indian Code . ' सैद्धांतिक विवेचन की मंजिल से आगे जाने का निर्णय करने के बाद यह जरूरी था कि अपीलकर्ता न सिर्फ राजनीतिक चिंतकों के आकर्षक सिद्धांतों का सम्मान करता , बल्कि उसके साथ उसे भारतीय संहिता की धाराओं और तथ्यों के सांसारिक मसलों की भी ध्यान रखना चाहिए था .
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| 7. | Thus the remedy against the Tribunal 's order , if the appellant is not satisfied with it , is either by way of a Writ petition under Article 226 or Article 32 of the Constitution before the High Courts or Supreme Court respectively or under Article 136 of the Constitution before the Supreme Court . इस प्रकार यदि अपीलकर्ता अधिकरण के Zकिसी आदेश से संतुष्ट नहीं है तो वह या तो अनुच्छेद 226 अथवा अनुच्छेद 32 के अधीन क्रमश : उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय में रिट याचिका प्रस्तुत कर सकता है या संविधान के अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय जा सकता है .
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| 8. | ” This court has no concern with the justice or otherwise of the claims of that appellant or with the rectitude of his political views , but the court may take cognisance of the fact that he does hold certain views ; for as a guide to his conduct and intention these views are of more relevant consideration . ' ” अपीलकर्ता के दावों के प्रति या उसके राजनीतिक विचारों के औचितऋ-ऊण्श्छ्ष्-य के प्रति नऋ-ऊण्श्छ्ष्-याय करने से इस अदालत का कोऋ सरोकार नहीं है , लेकिन अदालत इस तथऋ-ऊण्श्छ्ष्-य पर धऋ-ऊण्श्छ्ष्-यान दे सकती है कि वह कुछ निशऋ-ऊण्श्छ्ष्-चित विचार और दृषऋ-ऊण्श्छ्ष्-टिकोण रखता थाL और उसके आचरण तथा इरादे के पर्थप्रदर्शन के रूप में ये द्@Qषऋ-ऊण्श्छ्ष्-टिकोण प्रासंगिक तथा विचारणीय थे .
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| 9. | The court may direct parties to bear their costs where the law is settled for the first time , where litigation has arisen because of ambiguity in the statute , where the court itself has been in error , where the appellant does not press part of his claim , where the case involves important questions of law for decisions , where the case is a test case and the unsuccessful respondent has had to bear the brunt of the fight , when the question is related to interpretations of recent Statutes or where the court clarifies a confused judicial situation . यदि किसी मामले में विधि पहली बार तय हुई है , यदि वाद इसलिए उत्पन्न हुआ था कि विधि स्पष्ट नहीं थी , यदि अपीलकर्ता अपने वाद के अंश पर बल नहीं देता , यदि मामले में विधि के महत्वपूर्ण प्रश्न अंतर्वलित हैं जिन पर निर्णय होना है , यदि वाद परीक्षण-वाद ( टेस्ट केस ) हो और प्रत्यर्थी को संघर्ष का आघात सहना पड़ा है , यदि प्रश्न किसी हाल की विधि की व्यवस्था से संबंधित है या यदि न्यायालय ने किसी भ्रांतिपूर्ण न्यायिक स्थिति का स्पष्टीकरण किया है तो वहां न्यायालय दोनों पक्षों को अपने अपने खर्चों को वहन करने का आदेश दे सकता है .
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