| 1. | But my reading of war-time and post-war history shows that there was a gross betrayal of the Arabs by British imperialism . मैंने युद्धकालीन और युद्ध के बाद का जो इतिहास पढ़ा है , उससे पता चलता है कि ब्रिटिश साम्राज़्यवाद ने अरबों के साथ बेइंतिहा धोखा किया है .
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| 2. | How all over this great land they would find millions of peasants like themselves , with the same problems to face , much of the same difficulties and burdens , and crushing poverty and misery . इस लंबे-चौड़े मुल्क में उन जैसे लाखों किसान हैं , जिनके सामने भी वही सवाल , वही मुश्किलें , बेइंतिहा गरीबी और दुःख-तकलीफें हैं , जो उनके सामने हैं .
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| 3. | How all over this great land they would find millions of peasants like themselves , with the same problems to face , much of the same difficulties and burdens , and crushing poverty and misery . इस लंबे-चौड़े मुल्क में उन जैसे लाखों किसान हैं , जिनके सामने भी वही सवाल , वही मुश्किलें , बेइंतिहा गरीबी और दुःख-तकलीफें हैं , जो उनके सामने हैं .
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| 4. | The story of the past 12 years in Europe since the rise of Hitler the triumphant advance , the fiendish cruelty , the proud contempt for world opinion , the amazing growth in power , the persistent crushing out of all contrary opinion and especially the Jews , the Saar , Austria , Sudeten land , Munich , Prague & Czechoslovakia the Polish Corridorand then War ! हिटलर के उदय के बाद यूरोप में पिछले बारह सालों में क़्या हुआ-लगातार जीतते हुए फौजों का बढ़ना , जंगलियों जैसा बर्ताव , घमंड के साथ दुनिया की अपील की अनदेखी , बेइंतिहा ताकत , विरोधी खेमों और खासतौर से यहूदियों , सार , सूडेटेनलैंड , म्यूनिख , प्राह और चेकोस्लोवाकिया-पोलैंड लाइन के मुल्कों के सुझाव को ठुकराना और उसके बाद जंग .
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| 5. | The story of the past 12 years in Europe since the rise of Hitler the triumphant advance , the fiendish cruelty , the proud contempt for world opinion , the amazing growth in power , the persistent crushing out of all contrary opinion and especially the Jews , the Saar , Austria , Sudeten land , Munich , Prague & Czechoslovakia the Polish Corridorand then War ! हिटलर के उदय के बाद यूरोप में पिछले बारह सालों में क़्या हुआ-लगातार जीतते हुए फौजों का बढ़ना , जंगलियों जैसा बर्ताव , घमंड के साथ दुनिया की अपील की अनदेखी , बेइंतिहा ताकत , विरोधी खेमों और खासतौर से यहूदियों , सार , सूडेटेनलैंड , म्यूनिख , प्राह और चेकोस्लोवाकिया-पोलैंड लाइन के मुल्कों के सुझाव को ठुकराना और उसके बाद जंग .
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