| 21. | Ii that while a judicial authority ought to be thoroughly impartial , and ought to approach the consideration of any case without previous knowledge of the facts , an executive officer does not adequately discharge his duties unless his ears are open to all reports and information which he can in any degree employ for the benefit of the district ; जहां न्यायिक प्राधिकारी को पूर्णतया निष्पक्ष होना चाहिए और उसे किसी मामले पर विचार आरंभ करते समय तथ्यों का पूर्वज्ञान नहीं होना चाहिए , वहां कार्यपालक अधिकारी तब तक अपने कर्तव्यों का समुचित ढंग से निर्वाह नहीं कर सकता जब तक कि वह उन सभी सूचनाओं और जानकारियों को कान न दे जिन्हें वह जिले के हित के लिए काम में ला सकता है ;
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| 22. | 51. If your organisation has no UK employee with authority to sign (and the person does not qualify for 'sole representative' status under the Immigration Rules) the employer declaration may be signed by a UK registered solicitor, (but not by any other agent) with a letter of authorisation from the employer. 51 अगर आप की संस्था के पास हस्ताक्षर करने के लिए कोई यू.के का प्राधिकारी नही है (और आप्रावास के नियमों के अंतर्गत व्यक्ति एकमात्र प्रतिनिधी के स्तर के योग्य नही होता) तो नियोक्ता की घोषणा पर किसी यू.के के पंजीकृत वकील के द्वारा हस्ताक्षर करवाये जा सकते हैं , (लेकिन किसी और दलाल के द्वारा नही) जिस के साथ नियोक्ता द्वारा प्राधिकृति का पत्र होना चाहिए ।
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| 23. | 51 . If your organisation has no UK employee with authority to sign -LRB- and the person does not qualify for ' sole representative ' status under the Immigration Rules -RRB- the employer declaration may be signed by a UK registered solicitor , -LRB- but not by any other agent -RRB- with a letter of authorisation from the employer . 51 अगर आप की संस्था के पास हस्ताक्षर करने के लिए कोई यू.के का प्राधिकारी नही है ( और आप्रावास के नियमों के अंतर्गत व्यक्ति एकमात्र प्रतिनिधी के स्तर के योग्य नही होता ) तो नियोक्ता की घोषणा पर किसी यू.के के पंजीकृत वकील के द्वारा हस्ताक्षर करवाये जा सकते हैं , ( लेकिन किसी और दलाल के द्वारा नही ) जिस के साथ नियोक्ता द्वारा प्राधिकृति का पत्र होना चाहिए
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| 24. | Unless their jurisdiction is curtailed or abrogated by any special law , the civil courts are the forum for deciding any and every kind of civil dispute between individuals , between individuals and public authorities , whether of the Government of India or of the state governments , or any other authority constituted or created by any law . जब तक उनकी अधिकारिता में कमी न कर दी जाए अथवा उसे निराकृत न कर दिया जाए तब तक सिविल न्यायालय प्रत्येक प्रकार के सिविल विवाद का निर्णय करने में सक्षम न्यायालय हैं- ये विवाद चाहे व्यक्तियों के बीच हों , व्यक्तियों और लोक प्राधिकारियों के बीच हों , ये प्राधिकारी भारत सरकार के हों चाहे राज्य सरकारों के अथवा विधि द्वारा गठित या विरचित किसी अन्य प्राधिकारी से संबंधित हों .
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| 25. | Unless their jurisdiction is curtailed or abrogated by any special law , the civil courts are the forum for deciding any and every kind of civil dispute between individuals , between individuals and public authorities , whether of the Government of India or of the state governments , or any other authority constituted or created by any law . जब तक उनकी अधिकारिता में कमी न कर दी जाए अथवा उसे निराकृत न कर दिया जाए तब तक सिविल न्यायालय प्रत्येक प्रकार के सिविल विवाद का निर्णय करने में सक्षम न्यायालय हैं- ये विवाद चाहे व्यक्तियों के बीच हों , व्यक्तियों और लोक प्राधिकारियों के बीच हों , ये प्राधिकारी भारत सरकार के हों चाहे राज्य सरकारों के अथवा विधि द्वारा गठित या विरचित किसी अन्य प्राधिकारी से संबंधित हों .
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| 26. | Certain special provisions have been made in the Constitution , and the Chief Justice , by virtue of Article 146 , has been given the power to appoint the staff of the court , to lay down the conditions of service of the said staff -LRB- without reference to any outside authority except in regard to pension , salary and allowances and leave , where consultation with the President is stipulated -RRB- with a view to avoiding any inconsistency in the pay structure of the staff of Supreme Court and that of the corresponding classes of other government servants . संविधान में कुछ विशेष उपबंध किए गए हैं , और अनुच्छेद 146 के आधार पर , मुख़्य न्यायमूर्ति को यह शक्ति प्रदान की गई है कि वह न्यायालय के कर्मचारी वर्ग की नियुक्ति कर सके और इन कर्मचारियों की सेवा-शर्तें अवधारित कर सके ( ऐसा करते समय उसे किसी बाहरी प्राधिकारी से पूछने की आवश्यकता नहीं है ; पेंशन , वेतन , भत्ते और छुट्टी के बारे में निर्णय करते समय उसे राष्ट्रपति से परामर्श करना होगा पर यह शर्त उस दृष्टि से लगाई गई है कि उच्चतम न्यायालय और अन्य सरकारी कर्मचारियों के अनुरूप वर्गों की वेतन संरचना में असंगति न हो .
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| 27. | Judicial Review and Appeal Revision Under the above mentioned Acts , any person subject to the said Act and who is governed by any order passed by any Court Martial , can present a petition to the officer or authority empowered to confirm any finding or sentence of such Court Martial and the confirming authority can take such steps as may be considered necessary to satisfy itself about the correctness , legality or propriety of the order passed or the regularity of any proceeding to which the order relates and the punishment is awarded . न्यायिक समीक्षा और अपील पुनरीक्षण उपर्युक़्त अधिनियमों के अधीन , किसी अधिनियम के अध्यधीन कोई व्यक्ति जो किसी सेना न्यायालय द्वारा पारित किसी आदेश द्वारा शासित है , उस सेना न्यायालय के निष्कर्ष या उसके द्वारा दिए गए दंड की पुष्टि करने की शक्ति से संपन्न अधिकारी या प्राधिकारी को याचिका प्रस्तुत कर सकता है और पुष्टिकर्ता प्राधिकारी सेना न्यायालय द्वारा पारित आदेश की यथार्थता , वैधता अथवा उपयुक़्तता या उस आदेश से संबंधित किसी कार्रवाई और दिए गए दंड की नियमितता के विषय में स्वयं को संतुष्ट करने के लिए जो भी कदम उठाना आवश्यक समझे , उठा सकता
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| 28. | Judicial Review and Appeal Revision Under the above mentioned Acts , any person subject to the said Act and who is governed by any order passed by any Court Martial , can present a petition to the officer or authority empowered to confirm any finding or sentence of such Court Martial and the confirming authority can take such steps as may be considered necessary to satisfy itself about the correctness , legality or propriety of the order passed or the regularity of any proceeding to which the order relates and the punishment is awarded . न्यायिक समीक्षा और अपील पुनरीक्षण उपर्युक़्त अधिनियमों के अधीन , किसी अधिनियम के अध्यधीन कोई व्यक्ति जो किसी सेना न्यायालय द्वारा पारित किसी आदेश द्वारा शासित है , उस सेना न्यायालय के निष्कर्ष या उसके द्वारा दिए गए दंड की पुष्टि करने की शक्ति से संपन्न अधिकारी या प्राधिकारी को याचिका प्रस्तुत कर सकता है और पुष्टिकर्ता प्राधिकारी सेना न्यायालय द्वारा पारित आदेश की यथार्थता , वैधता अथवा उपयुक़्तता या उस आदेश से संबंधित किसी कार्रवाई और दिए गए दंड की नियमितता के विषय में स्वयं को संतुष्ट करने के लिए जो भी कदम उठाना आवश्यक समझे , उठा सकता
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