| 41. | These comments point to Palestinian appreciation for the benefits of elections, rule of law, minority rights, freedom of speech, and a higher standard of living. Amid all the PA's political extremism and terrorism, it is good to know that a Palestinian constituency also exists for normality. Unfortunately, it remains a furtive constituency with little political sway. The time has come for decent Palestinians to make their voices heard and state that Israel's existence is not the problem but the solution. Comment on this item इन टिप्पणियों से जाहिर होता है कि फिलीस्तीनी इजरायल के चुनावों के फायदे , कानून का राज , अल्पसंख्यक अधिकार , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अच्छे जीवन स्तर की प्रशंसा करते हैं . फिलीस्तीनी अथॉरिटी के राजनीतिक अतिवाद और आतंकवाद के बीच फिलीस्तीन के कुछ लोग सामान्य जीवन भी जीना चाहते हैं .दुर्भाग्यवश ऐसे लोगों की कोई राजनीतिक आवाज़ नहीं है .समय आ गया है कि फिलीस्तीनी भलेमानस सामने आकर अपनी बात कहें और लोगों को सुनाएं कि इजरायल का अस्तित्व समस्या नहीं समाधान है .
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| 42. | But we must take exception with his often breathless desire to raise unsubstantiated fears about Hamas's goals. The simple truth is that while the U.S. lists Hamas as a foreign terrorist organization, the group has never - not once - attacked or killed any Americans. Has the organization attacked and killed Israelis? Yes, unfortunately it has. And many of their operations have been reprehensible, killing and maiming innocent people. But as the directors of our organization, who have spent years working on the ground in the West Bank, Gaza and Israel will confirm, there is certainly enough blood to go around, including that of innocent Palestinians needlessly caught in the crossfire of a complex conflict. परन्तु हमास के उद्देश्यों को लेकर उनकी निर्मूल धारणा पर हमें आपत्ति है. सामान्य सत्य तो यह है कि अमेरिका ने हमास को आतंकवादी के रुप में सूचीबद्ध कर रखा है परन्तु इस गुट ने कभी किसी अमेरिकी को मारा है. क्या संगठन ने इजरायलवासियों पर हमला किया है? दुर्भाग्यवश ऐसा हुआ है. उनके बहुत से हमले क्रूर हैं जिनमें निर्दोष लोगों की जान गई है. परन्तु अपने संगठन के निदेशक के तौर पर पश्चिमी तट, गाजा और इजरायल में काफी समय बिताने के बाद स्पष्ट कह सकता हूँ कि दोनों तरफ से खून बह रहा है, इनमें इस जटिल संघर्ष में गोलीबारी में निर्दोष फिलीस्तीनी भी शामिल हैं.
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| 43. | One factor that could help prevent this dismal outcome would be for mainline Protestant churches to speak out against Palestinian Muslims for tormenting and expelling Palestinian Christians. To date, unfortunately, the Episcopalian, Evangelical Lutheran, Methodist, and Presbyterian churches, as well as the United Church of Christ, have ignored the problem. Related Topics: Anti-Christianism , Palestinians receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Comment on this item एक तरीका यह हो सकता है कि मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंट चर्च फिलीस्तीनी मुस्लिमों द्वारा फिलीस्तीनी ईसाईयों को निकालने और प्रताड़ित करने का विरोध करे . दुर्भाग्यवश एपिस्कोपालियन , एवेंन्जेलिकल लूथरन , मैथोडिस्ट , प्रेसबेटेरियन् चर्चों और यूनाईटेड चर्च ऑफ क्राईस्ट द्वारा इस समस्या की उपेक्षा हो रही है. इन चर्चों का ध्यान इस समस्या के बजाए इजरायल के नैतिक पराभव और यहां से अपना निवेश हटाने पर अधिक रहता है . इजरायल के प्रति उनका इतना लगाव है कि वे अपने जन्मस्थान में ही अंतिम सांसे गिन रही ईसाइयत के प्रति ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. आश्चर्य है.. आखिर वे कैसे जागेंगे ?.
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| 44. | One factor that could help prevent this dismal outcome would be for mainline Protestant churches to speak out against Palestinian Muslims for tormenting and expelling Palestinian Christians. To date, unfortunately, the Episcopalian, Evangelical Lutheran, Methodist, and Presbyterian churches, as well as the United Church of Christ, have ignored the problem. Related Topics: Anti-Christianism , Palestinians receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Comment on this item एक तरीका यह हो सकता है कि मुख्य धारा के प्रोटेस्टेंट चर्च फिलीस्तीनी मुस्लिमों द्वारा फिलीस्तीनी ईसाईयों को निकालने और प्रताड़ित करने का विरोध करे . दुर्भाग्यवश एपिस्कोपालियन , एवेंन्जेलिकल लूथरन , मैथोडिस्ट , प्रेसबेटेरियन् चर्चों और यूनाईटेड चर्च ऑफ क्राईस्ट द्वारा इस समस्या की उपेक्षा हो रही है. इन चर्चों का ध्यान इस समस्या के बजाए इजरायल के नैतिक पराभव और यहां से अपना निवेश हटाने पर अधिक रहता है . इजरायल के प्रति उनका इतना लगाव है कि वे अपने जन्मस्थान में ही अंतिम सांसे गिन रही ईसाइयत के प्रति ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. आश्चर्य है.. आखिर वे कैसे जागेंगे ?.
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| 45. | Apr. 12, 2007 update : In two-part essay titled “Is European Civil War Inevitable by 2025?” Paul Weston calls it inevitable that Europe will find itself engaged a civil war so bloody it would make “WWII look like a bun fight.” In part I , he makes this argument on the basis of demographic projections. In part II , he focuses on Islamic imperialism and predicts quite specifically when the European reaction will set it: “Somewhere between 2017 and 2030, during a period of heightened tension, Islamists in France, Holland or Britain will blow up one church, train or plane too many. Retaliation will begin and they, in turn will respond.” Apr. 16, 2007 update : In a major review of Philip Jenkins ' new book, God's Continent: Christianity, Islam, and Europe's Religious Crisis, Richard John Neuhaus writes skeptically of Jenkins' roseate views about the European future. Writing in the May 2007 issue of First Things (“ The Much Exaggerated Death of Europe ”), Neuhaus concludes the review with this anecdote: दुर्भाग्यवश ऐसे आशावाद का आधार काफी क्षीण है। यूरोप के लोग अभी भी अपनी ईसाई पहचान प्राप्त कर अधिक सन्तान उत्पन्न कर अपनी विरासत को सँभाले रख सकते हैं। वे गैर मुस्लिम आप्रवास को प्रोत्साहित कर अपने मध्य स्थित मुसलमानों को उनकी संस्कृति से दूर रख सकते हैं। परन्तु न तो ऐसे परिवर्तन हो रहे हैं और न ही उनकी सम्भावना दिखती है। इसके बजाय मुसलमान अपने पड़ोसियों से शिकायत रखते हैं और उनसे विपरीत महत्वाकांक्षायें रखते हैं। चिन्ता इस बात कि है कि प्रत्येक मुस्लिम पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी की अपेक्षा अधिक अलग-थलग पड़ती जा रही है। कनाडा के उपन्यासकार ह्यूज मैकलेनन ने टू सालीट्यूड्स में अपने देश में अंग्रेज फ्रेन्च विभाजन के माध्यम से इसी रूप को चित्रित किया था जिस पर अधिक चर्चा नहीं हुई। उदाहरण के लिये ऐसे ध्रुव पर ब्रिटिश मुसलमान अधिकांश संख्या में मुस्लिम पहचान और ब्रिटिशपने के मध्य संघर्ष देखते हैं तथा इस्लामी कानून की स्थापना चाहते हैं।
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