| 31. | Overall, how goes the war? The first half-year showed some U.S. gains, but the real groundwork must still be laid if America is to win. Much toil lies ahead, starting with the ideological battle and with the diplomatic campaign not far behind. Related Topics: Terrorism , US policy , War on terror receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Reader comments (2) on this item Comment on this item ग्रेड डी कुल मिलाकर युद्ध कैसा जा रहा है? पहली छमाही से प्रतीत होता है कि अमेरिका को लाभ मिल रहा है परंतु यदि अमेरिका को विजयी होना है तो काफी जमीनी कार्य शेष है। अभी विचारधारागत संघर्ष से कूटनीतिक अभियान तक काफी कुछ करना बाकी है।
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| 32. | What to do? If coalition forces leave Iraq precipitously, anarchy and extremism would result. Stay too long, they will face an anti-imperialist backlash of sabotage and terrorism. Hold elections too fast, the Khomeini-like mullahs will probably win. Keep the country under an occupation force, and an intifada would rear up. ऐसे में क्या किया जाये ? यदि गठबन्धन सेनायें इराक को खतरनाक स्थिति में छोड़ देती है तो अराजकता और कट्टरता इसका परिणाम होगा। बहुत समय तक रूकने में उन्हें साम्राज्यवाद विरोधी तोड़फोड़ और आतंकवाद का विरोध झेलना होगा। यदि चुनाव तीव्र गति से कराये जाते हैं तो समभवत: खोमैनी मुल्ला विजयी होंगे। देश को आक्रमणकारी सेना के अधीन रखा जायेगा तो इन्तिफादा उत्पन्न होगा।
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| 33. | But , as we will see in the last chapter , if the linguistic problem which is the core of the whole cultural problem in India , is handled with understanding and imagination , the urge for cultural unity which is in our very blood , will overcome all separatist tendencies and strengthen the foundations of political unity . किंतु जैसाकि हम अंतिम अधऋ-ऊण्श्छ्ष्-याय में देखेंगे , यदि भाषा की समसऋ-ऊण्श्छ्ष्-या जो भारतवर्ष में सांसऋ-ऊण्श्छ्ष्-ऋतिक समसऋ-ऊण्श्छ्ष्-याओं की मूल कडऋई है , को दूरदर्शिता और समझदारी से सुलझाया जाये तो सांसऋ-ऊण्श्छ्ष्-ऋतिक एकता की प्रबल भावना , जो हमारे रकऋ-ऊण्श्छ्ष्-त में है , समसऋ-ऊण्श्छ्ष्-त अलगाववादी प्रवृतियों पर विजयी होगी और राजनैतिक एकता की नींव को मजबूत करती है .
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| 34. | FDR, Reagan ... and Obama? In this spirit, I argued then for U.S. help to the losing party, whichever that might be, as in this May 1987 analysis: “In 1980, when Iraq threatened Iran, our interests lay at least partly with Iran. But Iraq has been on the defensive since the summer of 1982, and Washington now belongs firmly on its side. … Looking to the future, should Iraq once again take the offensive, an unlikely but not impossible change, the United States should switch again and consider giving assistance to Iran.” इस कठिन सुझाव के लिये मेरे कुछ निम्नलिखित तर्क हैं: दुष्ट शक्तियाँ हमारे लिये कम खतरा उत्पन्न करती हैं जब वे एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध करती हैं। इससे एक तो उनका ध्यान स्थानीय रूप तक सीमित रहता है, दोनों में से किसी एक को भी विजयी होने से रोकता है ( जिससे कि कहीं बडा खतरा उत्पन्न होता है) । पश्चिमी शक्तियों को पराजित हो रहे पक्ष को सहायता प्रदान कर शत्रु के लिये गतिरोध की स्थिति खडी कर देनी चाहिये ताकि उनका संघर्ष अधिक लम्बा खिंचे।
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| 35. | Of course, Israel faces obstacles in achieving victory. The country is hemmed in generally by international expectations (from the United Nations Security Council, for example) and specifically by the policies of its main ally, the U.S. government. Therefore, if Jerusalem is to win, that starts with a change in policy in the United States and in other Western countries. Those governments should urge Israel to seek victory by convincing the Palestinians that they have lost. निश्चित रूप से इजरायल को विजय प्राप्त करने में अनेक बाधाओं का सामना करना पडेगा। देश अनेक अंतरराष्ट्रीय अपेक्षाओं ( संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद ) और अपने प्रमुख सहयोगी अमेरिका की नीतियों से घिरा है । लेकिन फिर भी यदि जेरूसलम को विजयी होना है तो इसके लिये अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों की नीतियों में कुछ परिवर्तन होना होगा। इन सरकारों को इजरायल के आग्रह करना चाहिये कि वे फिलीस्तीनियों को यह समझाकर विजय प्राप्त करें कि फिलीस्तीनी पराजित हो चुके हैं।
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| 36. | In some cases, it is a matter of expediency, notably for Mr. Netanyahu, who believed his reelection chances improved via a deal with the Syrian government. In other cases, there are elements of duplicity - specifically, hiding planned concessions knowing their unpopularity with the voters. Yossi Beilin, one of Mr. Barak's ministers, admitted during the Camp David II summit that he and others in the government had earlier concealed their willingness to divide Jerusalem. “We didn't speak about this in the election campaign, because we knew that the public would not like it.” आखिर वे कौन से कारण हैं जिनसे हाल के प्रधानमन्त्री अपने संकल्पित उद्देश्यों से पीछे हटकर एकतरफा छूट की नीति अपना लेते हैं. कुछ मामलों में यह आवश्यकता पर आधारित होता है, विशेषरूप से नेतनयाहू जिनका विश्वास था कि सीरिया की सरकार के साथ समझौता करने से उनके पुन: विजयी होने की सम्भावनायें बन्द हो जायेंगी. कुछ मामलों में इनमें दोहरा चरित्र भी शामिल होता है और विशेष रूप से मतदाताओं के बीच छूटों की अलोकप्रियता को जानकर उसे छिपाना.
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| 37. | The outraged general officers bided their time. In early 2011, when brave, secular, and modern young people in Tahrir Square announced their impatience with tyranny, the junta exploited them to push Mubarak from office. Liberals thought they won, but they served merely as a tool and pretext for the military to be rid of its despised master. Having served their purpose, liberals were shunted aside as officers and Islamists competed for loot. President Anwar el-Sadat (r. 1970-81). आक्रोशित जनरल अधिकारियों ने अपने समय की प्रतीक्षा की । 2011 के आरम्भ में जब साहसी, सेक्युलर और आधुनिक युवकों ने तहरीर चौक पर उत्पीडन के विरुद्ध अपना धैर्य खोने की घोषणा की तो सेना ने उनका दोहन कर मुबारक को सत्ता से हटा दिया। उदारवादियों को लगा कि वे विजयी हो गये परंतु उनका प्रयोग किया गया था और सेना ने इन्हें उपकरण बनाकर अपने स्वामी को किनारे लगा दिया। अपने उद्देश्य में सफल होने के बाद उदारवादियों को शांत करा दिया गया और अधिकारी व इस्लामवादी लूट की प्रतिस्पर्धा में लग गये।
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| 38. | Islam is the fourteen-century-old faith of a billion-plus believers that includes everyone from quietist Sufis to violent jihadis. Muslims achieved remarkable military, economic, and cultural success between roughly 600 and 1200 c.e. Being a Muslim then meant belonging to a winning team, a fact that broadly inspired Muslims to associate their faith with mundane success. Those memories of medieval glory remain not just alive but central to believers' confidence in Islam and in themselves as Muslims. इस्लाम चौदह सौ वर्ष पुराना एक अरब से अधिक आस्थावानों का मजहब है जिसमें कि हिंसक जिहादी से शांत सूफी तक सभी आते हैं । मुसलमानों ने 600 से 1200 शताब्दी के मध्य उल्लेखनीय सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक सफलता प्राप्त की । उस काल में मुस्लिम होने का अर्थ था एक विजयी टीम का सदस्य होना यह ऐसा तथ्य था जिसने कि मुसलमानों को इस बात के लिये प्रेरित किया कि वे अपनी आस्था को भौतिक सफलता के साथ जोडें। मध्य काल के उस गौरव की स्मृतियाँ न केवल जीवित हैं वरन इस्लाम और मुस्लिम की आस्था और विश्वास का एक कारण हैं।
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| 39. | Here is my logic for this reluctant suggestion: Evil forces pose less danger to us when they make war on each other. This (1) keeps them focused locally and it (2) prevents either one from emerging victorious (and thereby posing a yet-greater danger). Western powers should guide enemies to stalemate by helping whichever side is losing, so as to prolong their conflict. This policy has precedent. Through most of World War II, Nazi Germany was on the offensive against Soviet Russia and keeping German troops tied down on the Eastern Front was critical to an Allied victory. Franklin D. Roosevelt therefore helped Joseph Stalin by provisioning his forces and coordinating the war effort with him. In retrospect, this morally repugt but strategically necessary policy succeeded. And Stalin was a far worse monster than Assad. Stalin, Saddam Hussein ... and Bashar al-Assad? विश्लेषक इस बात से सहमत होंगे “ सीरिया के शासन की क्षमतायें बडी तेजी से कम हो रही हैं” ,कदम दर कदम यह पीछे हट रहा है और विद्रोहियों को सफलता मिलना और इस्लामवादियों का विजयी होना लगभग तय है। इसके उत्तर में मैं तटस्थ रहने की अपनी नीति को बदल रहा हूँ और एक मानवतावादी और दशकों तक असद शासन का शत्रु होने के चलते इस पर लिखने से पूर्व कुछ साँस लेना चाहता हूँ ।
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| 40. | The goal of victory is not exactly something novel. Sun Tzu , the ancient Chinese strategist, advised that in war, “Let your great object be victory.” Raimondo Montecuccoli , a seventeenth-century Austrian, said that “The objective in war is victory.” Carl von Clausewitz , a nineteenth-century Prussian, added that “War is an act of violence to compel the enemy to fulfill our will.” Winston Churchill told the British people: “You ask: what is our aim? I can answer in one word: Victory - victory - at all costs, victory, in spite of all terror, victory, however long and hard the road may be.” Dwight D. Eisenhower observed that “In war, there is no substitute for victory.” These insights from prior eras still hold, for however much weaponry changes, human nature remains the same. विजय से ऐसी परिस्थितियाँ बन ही जाती हैं कि जो शांति के लिये उपयुक्त होती हैं। ऐतिहासिक आँकडे इस बात को प्रमाणित करते हैं कि युद्ध तब समाप्त होते हैं जब एक पक्ष पराजय स्वीकार करता है और दूसरा पक्षा विजयी होता है। इसके आधार पर यह अंतर्द्ष्टि बनती है कि जब तक दोनों पक्ष अपनी मह्त्वाकाँक्षा को प्राप्त करना चाहते हैं तब तक संघर्ष जारी रहता है या फिर इसके रुक रुक कर चलने की सम्भावना बनी रहती है।
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