| 1. | Split track manually ट्रैक दस्ती रूप से विलग करें
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| 2. | A boolean value indicating whether the handlebox's child is attached or detached. यह बताते हुए एक बुलियन मान कि क्या नियंत्रणपेटी संतति संलग्न या विलग है.
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| 3. | But when you realise they are not separated from the whole but are parts and manifestations of divinity , that very moment they cease to be unreal and become real . ” लेकिन जब आप यह जान लेते हैं कि ये ब्रह्म से विलग नहीं , बल्कि ईश्वरत्व के ही अंश और अभिव्यक्ति हैं , उसी क्षण में ये अयथार्थ न रहकर वास्तविक हो जाते
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| 4. | The human and the divine , love of nature and of man , intuition and thought so mingle and interpenetrate in his consciousness that in his poetry , as in actual life , it is difficult to separate one from the other . मानवीय और दैवी , नैसर्गिक प्रेम और मानव-प्रेम , आत्म-बोध और विचार परस्पर उनकी चेतना में ठीक उसी प्रकार घुल-मिल जाते हैं जैसे कि उनके निजी जीवन में , और इन्हें एक-दूसरे से विलग करना कठिन हो जाता है .
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| 5. | If I return once more into existence , thereby I am separated from him ; and if I am neglected -LRB- i.e . not born anew and sent into the world -RRB- , thereby I become light and become accustomed to the union ” -LRB- sic -RRB- . . . . यदि मैं एक बार Z Zफिर लौटकर अस्तित्व में आ जाता हूं तो मैं उससे विलग हो जता हूं ; और यदि मेरी उपेक्षा की जाती है ( अर्थात मुझे पुनर्जन्म नहीं मिलता और मैं संसार में नहीं आता ) तो वायवीय बन जाता हूं और ? विलयन ? का ( एवमेव ) अभ्यस्त हो जाता हूं ? . .. . .
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| 6. | The other chaityas are mainly apsidal in plan , consisting of a long rectangular hall like a nave , terminating at the farther end into an apse with often two narrower aisles on either side , each separated from the nave by a row of pillars and extended round the apse as a circumambulatory passage round a stupa , also hewn out of rock and occupying the centre of the apse . अन्य चैत्य योजना में मेहराबनुमा ( गजपृष्ठकार ) अथवा स्तब्धिका पद्धति पर बने हैं , उनमें नाभि की तरह एक लंबा आयताकार सभागृह है-जो कि एक ओर अर्धवृत्तकक्ष में समाप्त होता है- अधिकतर इसके पार्श्व में संकरे पथ होते हैं , जो नाभि से स्तंभों की श्रृंखला द्वारा विलग होते हैं-जो अर्धवृत्त में Zस्थित स्तूप तक जाते हैं और प्रदक्षिणा पथ बनाते हैं .
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| 7. | Bhulabhai Desai went straight to the heart of the matter -LRB- the subject people 's right to revolt -RRB- when he said , ” In the situation in which an Indian finds himself , the question is under what circumstances and to what extent the question of allegiance can be raised at all , because once you divide the King from the country , it becomes a very difficult issue altogether tot any human being to decide , and hence I would prefer to rest my argument on the occurrences of 17th February . भूलाभाई देसाई सीधे मूल मुद्दे तक पहुंचे ( विद्रोह करने के प्रजा के अधिकार तक ) , जब उन्होंने कहा- ” एक भारतीय अपने आपको जिस स्थिति में पाता है , उसे देखते हुए सवाल यह उठता है कि किन हालात में और किस सीमा तक राजभक़्ति का प्रश्न उठाना जायज है , क़्योंकि अगर राज़्य को सम्राट से विलग करके देखें , तो यह निर्णय करना किसी भी इंसान के लिए बिलकुल अलग ही मुद्दा होगा और इसलिए मैं 17 फरवरी की घटनाओं पर अपना तर्क आधारित करना चाहूंगा .
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| 8. | The only course open to you , the judge , is either to resign your post , disassociate yourself from evil if you feel that the law you are called upon to administer is an evil , and that in reality I am innocent or to inflict on me the severest penalty if you believe that the system and the law you are assisting to administer are good for the people of this country and that my activity is therefore injurious to the public weal . ” A contemporaneous writer , Mr N . K . Prabhu , has recorded that it was impossible to describe the atmosphere in that hall at the time he was reading and a few minutes after he finished reading his statement . Every word of it was eagerly followed by the whole audience . अतः अपने इस कृत्य के लिए , जो कानून की नजरों में जानबूझकर किया गया अपराध है और जो मेरी नजरों में एक नागरिक का उच्चतम दायित्व है , मैं खुशी से कड़े से कड़े दंड को आमंत्रित करता हूं और उसके समक्ष पूर्ण आत्मउमर्पण करता हूं , और न्यायाधीश महोदय , आपके लिए एकमात्र रास्ता यही है कि या तो आप अपने पद से त्यागपत्र दे दें , स्वयं को दुष्टता से विलग कर लें , अगर आपको लगता है कि आपको जिस कानून को लागू करना है , वह दुष्ट है और असलियत में मैं निर्दोष हूं , या फिर अगर आप सोचते हैं कि यह व्यवस्था और यह कानून इस देश के लोगों की भलाई के लिए है और मेरे क्रियाकलाप जन-कल्याण में बाधक हैं तो मुझे कड़ी से कड़ी सजा दें . ”
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