| 1. | Make sure she makes the tennis team by fifth grade and Yale by seventh grade.” इसका ख्याल रखना है कि वो पॉंचवी कक्षा तक टैनिस की टीम में शामिल हो जाए और सातवीं तक येल में दाखिल हो जाए।”
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| 2. | What long-term impact does a radicalized and repressive university atmosphere have on students? The country needs its universities to become more mature, responsible and patriotic. To achieve this change means taking the wayward academy back from the faculty and administrators who now run it. येल विश्वविद्यालय के ग्लेन्डा गिलमोर इराक के साथ वाशिंगटन के टकराव में अमेरिका का साम्राज्यवाद देखते हैं।
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| 3. | I say this because unlike comparable federal boards, this one has only advisory, not supervisory, powers. It also has limited authority, being specifically prohibited from considering curricula. Professors can teach politically one-sided courses, for example, without funding consequences. More broadly, such federal boards generally do too little. I have sat on two other ones and find them cumbersome bureaucratic mechanisms with limited impact. इस धोखेबाजी से परिसर के समाचार पत्रों कोलम्बिया, सी. यू. एन. वाई, स्वार्थमोर और येल ने मुझे बिल के साथ सम्बद्ध किया। इसी का अनुसरण शहर के समाचार पत्रों बर्कशायर ईगल और ओरेजोनियन तथा बेबसाइटों ने भी किया ।
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| 4. | In a brilliant Weekly Standard essay , Yale's David Gelernter recently explained how this happened. The power of appeasement was temporarily hidden by World War II and the Cold War, but with the passage of time, “The effects of the Second World War are vanishing while the effects of the First endure.” वीकली स्टैण्डर्ड के एक मेघावी निबन्ध में येल के डेविड गेलेन्टर ने इसकी ब्याख्या की है कि कैसे यह घटित हुआ । “द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध के दौरान तुष्टीकरण की शक्ति अस्थाई तौर पर छुप गई थी परन्तु समय बीतने के साथ द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव नष्ट हो गया जबकि प्रथम विश्व युद्ध का शाश्वत रहा ''।
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| 5. | In contrast, Americans have continued massively investing in defense, creating a true superpower no other state can challenge. “In military terms there is only one player on the field that counts,” observes Yale historian Paul Kennedy. Looking at the contrast between the United States and the rest of the world, Kennedy finds that “Nothing has ever existed like this disparity of power; nothing.” इसके विपरीत अमेरिका ने अपनी सुरक्षा पर भारी निवेश किया है और ऐसी महाशक्ति निर्मित की है कि जिसे कोई भी चुनौती नहीं दे सकता। येल इतिहासकार पाल केनेडी का मानना है , “ सैन्य संदर्भ में केवल एक खिलाडी है जिसकी गणना की जा सकती है” । अमेरिका और शेष विश्व की तुलना करते हुए विरोधाभास की ओर ध्यान दिलाते हुए केनेडी ने पाया, “ इससे पूर्व शक्ति का इतना असंतुलन कभी नहीं था”
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| 6. | Then came 1914, when in a fit of delirium nearly all Europe abandoned appeasement and rushed into World War I with what Yale historian Peter Gay calls “a fervor bordering on a religious experience.” A century had passed since the continent had experienced the miseries of war, and their memory had vanished. Worse, thinkers such as the German Friedrich Nietzsche developed theories glorifying war. उसके बाद 1914 आया जब अब्यवस्था की स्थिति में यूरोप ने तुष्टीकरण को छोड़कर प्रथम विश्व युद्ध की ओर दौड़ लगाई जिसे येल इतिहासकार पीटर ग्रे ने ‘ धार्मिक अनुभव की लगन बताया है। इस महाद्वीप को युद्ध की यन्त्रणा झेले एक शताब्दी बीत चुकी है उसकी स्मृतियों नष्ट हो टुकी हैं। इससे भी बुरा यह की जर्मन चिन्तक फ्रेडरिक नीत्शे ने तो युद्ध के महिमामण्डन की अवधारणा विकसित की है।
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| 7. | For every exercise in free speech since 1989, such as the Danish Muhammad cartoons or the no-holds-barred studies of Islam published by Prometheus Books , uncountable legions of writers, publishers, and illustrators have shied away from expressing themselves. Two examples: Paramount Pictures replaced the Hamas-like terrorists of Tom Clancy's novel The Sum of All Fears with European neo-Nazis in its movie version of the story. And Yale University Press published a book on the Danish cartoon crisis without permitting the cartoons to be reproduced in the study. 1989 से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हर मामले में जैसे डेनमार्क में मुहम्मद का कार्टून हो या फिर अन्य मामला हो सभी में अनेक लेखकों को , प्रकाशकों को और व्याख्याकारों को स्वयं को अभियव्यक्त करने से परहेज करना पडा है। उदाहरण के लिये टाम क्लेंसी के उपन्यास में हमास जैसे दिखने वाले आतंकवादी का चित्रण अन्य रूप में करना पडा। येल विश्वविद्यालय ने अपनी पुस्तक जो डेनमार्क में कार्टून विवाद पर लिखी गयी उसमें कार्टून फिर से प्रकाशित नहीं हुए।
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| 8. | Yale historian Paul Kennedy defines appeasement as a way of settling quarrels “by admitting and satisfying grievances through rational negotiation and compromise, thereby avoiding the resort to an armed conflict which would be expensive, bloody and possibly very dangerous.” The British Empire relied heavily on appeasement from the 1860s on, with good results - avoiding costly colonial conflicts while preserving the international status quo. To a lesser extent, other European governments also adopted the policy. येल इतिहासकार पाल केनेडी ने तुष्टीकरण की परिभाषा “ झगड़ों को निपटाने के एक रास्ते के रूप में की है जहाँ लोगों को तार्किक बाचीत और समझौते के द्वारा शिकायतों को सन्तुष्ट कर मंहगे, खून खराबे युक्त और सम्भवत: काफी भयानक सशस्त्र संघर्ष को बचाया जाता है।'' ब्रिटिश साम्राज्य ने 1860 से इस तुष्टीकरण को अपनाया जिसके अच्छे परिणाम हुए तथा मंहगे औपनिवेशिक संघर्षों को बचाते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी यथा स्थित बनाने में सफल रहे। कुछ हद तक अन्य यूरोपीय सरकरों ने भी यही नीति अपनाई।
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| 9. | In perhaps the most convincing treatment of the pro-appeasement thesis, Paul M. Kennedy, a British historian teaching at Yale University, established that appeasement has a long and credible history. In his 1976 article, “The Tradition of Appeasement in British Foreign Policy, 1865-1939,” Kennedy defined appeasement as a method of settling quarrels “by admitting and satisfying grievances through rational negotiation and compromise,” thereby avoiding the horrors of warfare. It is, he noted, an optimistic approach, presuming humans to be reasonable and peaceful. सम्भवतः तुष्टीकरण के समर्थन में सबसे अधिक समझाने वाला तर्क येल विश्वविद्यालय में ब्रिटिश इतिहास का अध्यापन करने वाले पाल एम केनेडी ने स्थापित करने का प्रयास किया है कि तुष्टीकरण का लम्बा और प्रामाणिक इतिहास है। 1976 के अपने लेख , “ 1865 से 19939 तक ब्रिटेन की विदेश नीति में तुष्टीकरण की परम्परा” में केनेडी ने तुष्टीकरण को झगडों को शांत करने के एक तरीके के रूप में परिभाषित किया है जहाँ कि असंतोष के कारण को मान लिया जाता है और तार्किक बातचीत और समझौते से संतुष्ट किया जाता है , और इस प्रकार युद्ध के तरीकों की दुखद स्थिति से बचा जाता है। उनके अनुसार यह एक आशावादी रुख होता है जिसमें कि यह पूर्वानुमान लगाया जाता है कि मानव समझदार और शांतिपूर्ण होता है।
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| 10. | Now, for the problems. The military itself represents the lesser problem. In charge for six decades, it has made a mess of things. Tarek Osman, an Egyptian writer, eloquently demonstrates in a new book, Egypt on the Brink: From Nasser to Mubarak (Yale University Press) how precipitously Egypt's standing has declined. Whatever index one chooses, from standard of living to soft-power influence, Egypt today lags behind its monarchical predecessor. Osman contrasts the worldly Cairo of the 1950s to the “crowded, classic third-world city” of today. He also despairs how the country “that was a beacon of tranquility … has turned into the Middle East's most productive breeding ground of aggression.” अब समस्या देखें। सेना ही अपने आपमें एक छोटी समस्या का प्रतिनिधित्व करती है। पिछले छह दशकों से नियन्त्रण स्थापित रखने के साथ ही इसने चीजों को बिगाडा भी है। मिस्र के लेखक तारिक उस्मान ने अपनी पुस्तक Egypt on the Brink: From Nasser to Mubarak ( येल विश्वविद्यालय से प्रकाशित) में इस बात को अत्यंत प्रभावशाली ढंग से रखा है कि किस प्रकार मिस्र का प्रभाव घटा है। जो भी सूचकाँक चयनित किया जाये फिर वह जीवन स्तर से लेकर नरम स्तर पर शक्ति का प्रभाव हो मिस्र आज की स्थिति में अपने पूर्ववर्ती राजाओं से काफी पीछे है। उस्मान ने 1950 के वैश्विक कैरो को आज के “ भीडभाड वाले ,शात्रीय तृतीय विश्व के शहर” के विपरीत पाया है। उन्हें इस बात पर भी निराशा व्यक्त की है कि किस प्रकार एक देश जो कि एक समय , “ शांति का दिशानिर्देशक था वह मध्य पूर्व में उग्रता की उत्पाद भूमि में परिवर्तित हो चुका है”
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