1919 के अधिनियम के तहत पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित करके सिख, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपियों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था की गई तथा 1935 के अधिनियम में इसका विस्तार किया गया।