| 11. | Indeed, Mohammed Bouazizi was duly avenged. His act of despair has already led to the overthrow of two tyrants (in Tunisia, Egypt), precipitated two civil wars (in Libya, Yemen), and destabilized two governments (in Bahrain, Syria). The Internet made him a historical figure. The new Tunisian government quickly issued a stamp in Bouazizi's honor. Mr. Pipes is director of the Middle East Forum and Taube distinguished visiting fellow at the Hoover Institution of Stanford University. Apr. 20, 2011 update : In a spirit of healing, the Bouazizi family yesterday dropped its complaint against Fadiya Hamdi and the court has dropped charges against her. May 17, 2012 update : Michael Totten interviewed Fadiya Hamdi who defended herself, starting with the assertion that she is not a policewoman and that Bouazizi pushed and wounded her. Fadiya Hamdi of Sidi Bouzid. निश्चित रूप से मोहम्मद बउजीजी का प्रतिशोध लिया गया। हताशा में उठाये गये उसके कदम से तो दो शासन उखाडे जा चुके हैं ( ट्यूनीशियाम मिस्र) दो गृह युद्ध ( लीबिया, यमन) भडक चुके हैं और दो सरकारें अस्थिर हो चुकी हैं (बहरीन , सीरिया) । इंटरनेट ने उसे ऐतिहासिक चरित्र बना दिया है।
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| 12. | The present cold war goes back to 1979, when Ayatollah Khomeini seized power in Tehran and harbored grand ambitions to destabilize other states in the region to impose his brand of revolutionary Islam. Those ambitions waned after Khomeini's death in 1989 but roared back to life with Ahmadinejad's presidency in 2005 along with the building of weapons of mass destruction, widespread terrorism, engagement in Iraq, and the claim to Bahrain . वर्तमान शीत युद्ध का आरम्भ 1979 में हुआ था जब अयातोला खोमैनी ने तेहरान में सत्ता प्राप्त कर ली थी और क्षेत्र में अन्य राज्यों को अस्थिर कर अपने क्रांतिकारी इस्लाम को उन पर थोपने की विशाल महत्वाकाँक्षा पाल ली। यह महत्वाकाँक्षा 1989 में खोमैनी की मृत्यु के बाद समाप्त हो गयी परंतु 2005 में अहमदीनेजाद के राष्ट्रपति बनने के उपरांत इस महत्वाकाँक्षा को जनसंहारक हथियारों के निर्माण , विस्तृत आतंकवाद , इराक में रुचि और बहरीन पर दावे से पुनर्जीवन मिला ।
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| 13. | This history comes to mind because an Iranian spokesman recently enunciated a somewhat similar threat against Bahrain . Hossein Shariatmadari, an associate of Iran's supreme leader, Ayatollah Ali Khamenei, and editor of the daily newspaper Kayhan , published an op-ed on July 9 in which he claimed: “Bahrain is part of Iran's soil, having been separated from it through an illegal conspiracy [spawned] by ... Shah [Mohammed Reza Pahlavi, along with] the American and British governments.” Referring to Bahrain's majority Shiite population, Mr. Shariatmadari went on to claim, without any proof: “The principal demand of the Bahraini people today is to return this province … to its mother, Islamic Iran.” यह इतिहास मस्तिष्क में आया क्योंकि हाल में ईरानी प्रवक्ता ने बहरीन के समबन्ध में ऐसी ही धमकी दी है। ईरान के सर्वोच्च नेता अली खोमैनी के सहयोगी तथा केहोन दैनिक समाचार पत्र के सम्पादक हुसैन शरियतमदारी ने एक जुलाई को सम्पादकीय पृष्ठ पर एक लेख में दावा किया ‘ बहरीन ईरानी भूमि का एक भाग है जिसे अमेरिका, ब्रिटेन तथा शाह(मोहम्मद रजा पहलवी) के षड्यन्त्र से अलग कर दिया गया ''।
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| 14. | Mar. 18, 2008 update : My blog,“ Churches in Saudi Arabia? ” notes that the papal nuncio to Kuwait, Qatar, Bahrain, the United Arab Emirates, and Yemen, says that “Discussions are under way to allow the construction of churches” in Saudi Arabia. Mar. 20, 2008 update : The German Church is demanding a Christian center in Tarsus, Turkey , home of St. Paul, in return for a benevolent stance toward the construction of mosques in Germany. निचली श्रेणी के धर्मगुरू स्वाभाविक रूप से अधिक खुलकर बोल रहे हैं. मध्य पूर्व के ईसाइयों पर विशेष ध्यान देने वाले फ्रांसीसी संगठन ओयेवर डि ओरिएन्ट के महानिदेशक मोंसिगनोर फिलिप ब्रिजार्ड ने जोर देकर कहा “ इस्लाम का कट्टरपंथी होना ईसाइयों के पलायन का प्रमुख कारण है”. रोम के लैटर्न विश्वविद्यालय के रेक्टर विशप रिनो फिसिलेचा ने चर्च को मशविरा दिया है कि वह कूटनीतिक चुप्पी के बजाय अन्तरराष्ट्रीय संगठनों पर दबाव डाले कि मुस्लिम बहुल देशों के राज्य और समाज अपनी जिम्मेदारी समझें.
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| 15. | The Arab upheavals of 2011 have inspired wildly inconsistent Western responses. How, for example, can one justify abiding the suppression of dissidents in Bahrain while celebrating dissidents in Egypt? Or protect Libyan rebels from government attacks but not their Syrian counterparts? Oppose Islamists taking over in Yemen but not in Tunisia? मध्यपूर्व में मित्रहीन वर्ष 2011 में अरब की उथल पुथल से प्रेरित पश्चिमी प्रतिक्रिया अत्यन्त असंगत रूप में सामने आयी। उदाहरण के लिये क्या कोई एक ओर बहरीन में विद्रोह को कुचलने के प्रयास का समर्थन करने और वहीं दूसरी ओर मिस्र में इसी प्रकार के विद्रोहियों का समर्थन करने को न्यायसंगत सिद्ध कर सकता है? या फिर लीबिया में एक ओर सरकार के आक्रमण से विद्रोहियों को बचाने के प्रयास का तो वहीं दूसरी ओर सीरिया में इसी प्रकार से सरकारी आक्रमण में विद्रोहियों का साथ न देने का? यमन में तो इस्लामवादियों द्वारा नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास का विरोध करना तो ट्यूनीशिया में ऐसे प्रयास पर चुप रहना।
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| 16. | A month later, Barack Obama declared his hope that “we are going to see not just movement from the Israelis, but also from the Palestinians around issues of incitement and security, from Arab states that show their willingness to engage Israel.” According to Foreign Policy blogger Laura Rozen - later confirmed by the White House - Obama “sent letters to at least seven Arab and Gulf states seeking confidence-building measures [CBMs] toward Israel.” (Those states include Bahrain, Egypt, Jordan, Morocco, Saudi Arabia, and the United Arab Emirates.) एक माह उपरांत बराक ओबामा के घोषणा की उन्हें आशा है , “ हम सुरक्षा और उकसावे के मामले में एक आंदोलन का आरंभ देखने की आशा कर रहे हैं जो न केवल इजरायल की तरफ से होगा वरन अरब के देश भी इजरायल के साथ कार्य व्यवहार की इच्छा जताएंगे” फोरेन पोलिसी पत्रिका के ब्लॉगर लौरा रोजेन ने बाद में बताया, व्हाइट हाउस से यह पुष्ट किया गया “ ओबामा ने इजरायल के साथ विश्वास बढाने के उपायों को आरम्भ करने के लिए कम से कम अरब और उसके आस पास के सात देशों को पत्र लिखा” ( इनमें बहारें, मिस्र, जार्डन , मोरक्को, सउदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात शामिल थे)
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| 17. | Second, while developments in Tunisia, Libya, Egypt, Yemen, and Bahrain have great significance, there are only two regional geo-strategic giants - Iran and Saudi Arabia - and both are potentially vulnerable. Discontent with the Islamic Republic of Iran became manifest in June 2009, when a rigged election brought massive crowds onto the streets. Although the authorities managed to suppress the “Green Movement,” they could not stifle it and it remains underground. Despite Tehran's strenuous efforts to lay claim to the revolts across the region, portraying them as inspired by the Iranian revolution of 1978-79 and its own brand of Islamism, these revolts more likely will inspire Iranians to renew their own assault on the Khomeinist order. दूसरा, यद्यपि ट्यूनीशिया, लीबिया, मिस्र , यमन और बहरीन में घटनाक्रम का गम्भीर प्रभाव होने वाला है लेकिन क्षेत्र में केवल दो भू रणनीतिक शक्तियाँ हैं ईरान और सउदीअरब और दोनों ही परिस्थितियों का शिकार हो सकती हैं। इस्लामिक रिपब्लिक आफ ईरान में असन्तोष के दर्शन जून 2009 में हुये थे जब कपटपूर्ण चुनावों के बाद बडी संख्या में लोग सडकों पर उतर आये थे। यद्यपि अधिकारी इस “ हरे आंदोलन” का दमन करने में सफल हो गये थे लेकिन वे इसे समाप्त नहीं कर पाये थे यह अब भी भूमिगत है। ईरान द्वारा तमाम प्रयासों के बाद भी कि समस्त क्षेत्र में हो रहे विद्रोह पर अपना दावा किया जाये कि यह 1978-79 की ईरानी क्रान्ति से प्रेरित है और इसके इस्लामवाद के स्वरूप से लेकिन इस बात की सम्भावना अधिक है कि ये विद्रोह ईरानी लोगों को इस बात के लिये प्रेरित करेंगे कि वे खोमैनी व्यवस्था पर अपने आक्रमण को नयी धार दें।
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| 18. | Kuwait, conquered by Iraq, actually disappeared from the face of the earth between August 1990 and February 1991; were it not for an American-led coalition, it would quite certainly never been resurrected. Lebanon has been effectively under Syrian control since 1976 and, should developments warrant formal annexation, Damascus could at will officially incorporate it. Bahrain is occasionally claimed by Tehran to be a part of Iran, most recently in July 2007, when an associate of Ayatollah Ali Khamene'i, Iran's supreme leader, claimed that “Bahrain is part of Iran's soil,” and insisted that “The principal demand of the Bahraini people today is to return this province … to its mother, Islamic Iran.” Jordan's existence as an independent state has always been precarious, in part because it is still seen as a colonial artifice of Winston Churchill, in part because several states (Syria, Iraq, Saudi Arabia) and the Palestinians see it as fair prey. कुवैत को इराक ने विजित कर लिया था और अगस्त 1990 से फरवरी 1991 तक यह पृथ्वी के मानचित्र से लुप्त हो गया था और यदि अमेरिका नीत गठबन्धन की सेनायें न होतीं तो इसका दुबारा खडा होना असम्भव था। सीरिया 1976 से लेबनान के नियंत्रण में है और यदि औपचारिक विलय हुआ तो दमिश्क अपनी इच्छानुसार इसे आधिकारिक रूप से अपना बना लेगा। कुछ अवसरों पर तेहरान दावा करता है कि बहरीन उसका भाग है। अभी हाल में जुलाई 2007 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोला खोमैनी के सहयोगी ने दावा किया कि “ बहरीन ईरानी धरती का अंग है” और जोर दिया “ बहरीन के लोगों की प्रमुख मांग है कि इस प्रांत को इसकी माता इस्लामी ईरान को वापस कर दी जाये”। जार्डन की अस्थिरता एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अब भी सन्दिग्ध है क्योंकि इसे अब भी विंस्टन चर्चिल की औपनिवेशिक रचना माना जाता है और अनेक राज्य( सीरिया, इराक, सऊदी अरब) और फिलीस्तीनी इसे अपना शिकार मानते हैं।
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