| 11. | Adli Mansour a mere figurehead? That's what the smart money is saying. But they said the same about Anwar el-Sadat after Gamal Abdul Nasser's sudden death in 1970, only to be proven wrong. Mansour could well be transient but it's too soon to know, especially given his near anonymity. अदली मंसूर केवल चेहरा भर हैं: उन्होंने 1970 में गमाल अब्दुल नसीर के आकस्मिक निधन के बाद अनवर अल सादात के बारे में भी यही कहा था परंतु यह गलत सिद्ध हुआ। मंसूर संक्रमण काल के हो सकते हैं परंतु यह कहना भी जल्दबाजी है और विशेष रूप से जब उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
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| 12. | Worse still , even before such an equilibrium could occur , the Americans in their characteristic haste speedily resorted to newer and newer methods of raising more crops and fruits on larger and larger holdings , so that a partnership of mutual benefit between insect and man could not come about . इससे भी बुरी बात यह हुई कि ऐसी साम्यावस्था आने से पूर्व ही अमरीकावासियों ने अपनी विशिष्ट जल्दबाजी में ज़्यादा से ज़्यादा भूभागों पर आधिकाधिक फसल और फल उगाने के नए से नए ढंग बड़ी तेजी से अपनाए जिसकी वजह से कीट और मनुष्य के बीच पारस्परिक लाभ की साझेदारी नहीं हो पाई .
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| 13. | Hastily , we renew our efforts and to meet the situation created entirely by ourselves , resort to stronger and quicker acting insecticides , which eliminate even the few beneficial species that may have by chance survived the first treatment . जल्दबाजी में हम अपने प्रयास और तेज कर देते हैं और हमारे ही द्वारा उत्पन्न परिस्थिति का सामना करने के लिए हम अधिक शक़्तिशाली और अधिक शीघ्रता से असर करने वाले कीटनाशकों का सहारा लेते हैं.इस वजह से जो थोड़ी बहुत हितकर जातियां कीटनाशकों के पहले उपचार के बाद संयोगवश जीवित बच गई थीं वे भी मर-खप जाती हैं .
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| 14. | Plan for a gradual transition. A population emerging from thirty years in the dungeon cannot cope with all the choices of full democracy, but must get there in steps. Democratically-minded autocrats can guide the country to full democracy better than snap elections. धीरे-धीरे संक्रमण की योजना - तीस वर्षों के भूमिगत कारावास से निकलने के बाद कोई जनसंख्या सम्पूर्ण लोकतन्त्र के सभी विकल्पों के साथ एकरस नहीं हो सकतता वरन् उसे अनेक कदमों में प्राप्त करना चाहिए. लोकतान्त्रिक मस्तिष्क के अधिनायकवादी देश को सम्पूर्ण लोकतन्त्र के लिए दिशा दे सकते हैं बनिस्तबत जल्दबाजी में चुनाव के।
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| 15. | I hope the foregoing pages have given the reader some idea how necessary it is to put the new Indian nationhood on a firm and sure foundation , to evolve a pattern of cultural life in the country with a variety of colours and designs worked harmoniously on a ground colour of unfading and indelible unity , and that this great object cannot be achieved by impatient haste or compulsion but only through immense patience , infinite love and ceaseless labour of which Mahatma Gandhi has set an ideal example . मुझे आशा है कि पाठकों को पिछलें पृष्ठों में यह ज्ञान हुआ होगा , कि भारतीय राष्ट्रीयता को सुदृढ सुरक्षित नींव पर आधारित करना कितना जरूरी है , जिससे कि देश में कभी न मिटने वाले एकता के स्थायी मूल रंग पर , विविध रंगों एवं कलाओं के सामंजस्यपूर्ण संयोजन से सांस्कृतिक जीवन का एक अच्छा स्वरूप उभरकर सामनें आये.इस उद्देश्य की पूर्ति अधैर्यपूर्ण जल्दबाजी या दबाव से नहीं हो सकती , बल्कि केवल पर्याप्त धीरज , असीम प्रेम और निरंतर श्रम से , इसे प्राप्त किया जा सकेगा , जिसका महात्मा गांधी ने एक आदर्श उपस्थित किया था .
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| 16. | Strangely, as “Old Europe” finds its backbone, the Anglosphere quivers. So awful was the American government reaction, it won the endorsement of the country's leading Islamist organization, the Council on American-Islamic Relations . This should come as no great surprise, however, for Washington has a history of treating Islam preferentially . On two earlier occasions it also faltered in cases of insults concerning Muhammad. In 1989, Salman Rushdie came under a death edict from Ayatollah Khomeini for satirizing Muhammad in his magical-realist novel, The Satanic Verses . Rather than stand up for the novelist's life, President George H.W. Bush equated The Satanic Verses and the death edict, calling both “offensive.” The then secretary of state, James A. Baker III, termed the edict merely “regrettable.” आश्चर्य है कि प्राचीन यूरोप के रीढ़ की हड्डी सीधी हो रही है लेकिन अमेरिकी सरकार की प्रतिक्रिया दुखद रही है .इस प्रतिक्रिया के बाद सरकार को देश के अग्रणी इस्लामवादी संगठन काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेश्न्स का भी समर्थन मिल गया. वैसे यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है क्योंकि इस्लाम को प्राथिमकता देने का वाशिंगटन का अपना इतिहास रहा है . इससे पहले भी दो मौंकों पर मोहम्मद के अपमान के विषय पर इसने जल्दबाजी दिखाई है.
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| 17. | As Washington sorts out options, I urge the administration to adopt two policies. First, renew the push for democratization initiated by George W. Bush in 2003, but this time with due caution, intelligence, and modesty, recognizing that his flawed implementation inadvertently facilitated the Islamists to acquire more power. Second, focus on Islamism as the civilized world's greatest enemy and stand with our allies, including those in Tunisia, to fight this blight. Mr. Pipes, director of the Middle East Forum and Taube distinguished visiting fellow at the Hoover Institution of Stanford University, lived in Tunisia in 1970. Related Topics: North Africa receive the latest by email: subscribe to daniel pipes' free mailing list This text may be reposted or forwarded so long as it is presented as an integral whole with complete and accurate information provided about its author, date, place of publication, and original URL. Comment on this item वाशिंग़टन विकल्पों पर विचार कर रहा है तो मैं प्रशासन से आग्रह करता हूँ कि वे दो नीतियाँ अपनायें। पहला, वर्ष 2003 में जार्ज डब्ल्यू बुश द्वारा आरम्भ की गयी लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया को तेज करें लेकिन इस बार अत्यन्त सतर्कता , बुद्धिमानी से और गरिमा से क्योंकि इस तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है कि जल्दबाजी में गलत ढंग से इसका क्रियान्वयन करने से इस्लामवादियों के हाथ में अधिक शक्ति जाने का खतरा रहता है। दूसरा, इस्लामवाद को सभ्य समाज के लिये सबसे बडा शत्रु माना जाये और अपने सहयोगियों के साथ एकजुट्ता दिखायी जाये जिसमें ट्यूनीशिया में भी इससे लड्ने वाले शामिल हैं।
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| 18. | I cheered this change in direction when it was announced, and still do. But here, too, I find the implementation flawed. The administration is trying to build democracy much too quickly. A mere 22 months, for example, passed between the overthrow of Saddam Hussein and elections for the prime minister of Iraq; in my view, the interval should have been closer to 22 years. Haste ignores the historical record. Democracy has everywhere taken time, and especially so when it builds on a foundation of totalitarian tyranny, as in Iraq. As I wrote in April 2003: जब इस दिशा में परिवर्तन की घोषणा की गई थी तभी मैंने इसका स्वागत किया था और अब भी कर रहा हूं. लेकिन यहां भी इसे लागू करने में मुझे कुछ कमियां दिखाई पड़ रही हैं. प्रशासन बहुत शीघ्र लोकतंत्र स्थापित करना चाहता है . उदाहरण के लिए सद्दाम हुसैन को हटाने और इराक में प्रधानमंत्री के चुनाव में केवल 22 महीने का अंतराल रहा . मेरे दृष्टिकोण में यह अंतराल 22 वर्षों का होना चाहिए था . जल्दबाजी में ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा हो जाती है . लोकतंत्र हर जगह समय लेता है और वह भी इराक जैसे स्थान पर जहां उसे अत्याचारी अधिनायकवादी बुनियाद पर खड़ा करना है . अप्रैल 2003 में मैंने लिखा था “ लोकतंत्र एक सीखी जाने वाली आदत है न कि प्रवृत्ति..सिविल समाज के आधारभूत ढ़ांचे जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , आवागमन की स्वतंत्रता , एकत्र होने की स्वतंत्रता , कानून का शासन , अल्पसंख्यकों के अधिकार तथा एक स्वतंत्र न्यायपालिका जैसे तत्वों को चुनाव कराने से पहले स्थापित किया जाना चाहिए.”
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| 19. | I cheered this change in direction when it was announced, and still do. But here, too, I find the implementation flawed. The administration is trying to build democracy much too quickly. A mere 22 months, for example, passed between the overthrow of Saddam Hussein and elections for the prime minister of Iraq; in my view, the interval should have been closer to 22 years. Haste ignores the historical record. Democracy has everywhere taken time, and especially so when it builds on a foundation of totalitarian tyranny, as in Iraq. As I wrote in April 2003: जब इस दिशा में परिवर्तन की घोषणा की गई थी तभी मैंने इसका स्वागत किया था और अब भी कर रहा हूं. लेकिन यहां भी इसे लागू करने में मुझे कुछ कमियां दिखाई पड़ रही हैं. प्रशासन बहुत शीघ्र लोकतंत्र स्थापित करना चाहता है . उदाहरण के लिए सद्दाम हुसैन को हटाने और इराक में प्रधानमंत्री के चुनाव में केवल 22 महीने का अंतराल रहा . मेरे दृष्टिकोण में यह अंतराल 22 वर्षों का होना चाहिए था . जल्दबाजी में ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा हो जाती है . लोकतंत्र हर जगह समय लेता है और वह भी इराक जैसे स्थान पर जहां उसे अत्याचारी अधिनायकवादी बुनियाद पर खड़ा करना है . अप्रैल 2003 में मैंने लिखा था “ लोकतंत्र एक सीखी जाने वाली आदत है न कि प्रवृत्ति..सिविल समाज के आधारभूत ढ़ांचे जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , आवागमन की स्वतंत्रता , एकत्र होने की स्वतंत्रता , कानून का शासन , अल्पसंख्यकों के अधिकार तथा एक स्वतंत्र न्यायपालिका जैसे तत्वों को चुनाव कराने से पहले स्थापित किया जाना चाहिए.”
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| 20. | Democratization : Voting does not start the democratization process but culminates and ends it. Before Iraqis can benefit from meaningful elections, they need to leave behind the bad habits of Saddam Hussein's tyrannical rule and replace them with the benign ways of civil society. There are many steps ahead, such as creating voluntary institutions (political parties, lobby groups, etc.), entrenching the rule of law, establishing freedom of speech, protecting minority rights, securing property rights, and developing the notion of a loyal opposition. Elections can evolve with these good habits. Voting should start at the municipal level and gradually move up to the national level. Also, they should begin with legislatures and move to the executive branch. लोकतंत्रीकरण - मतदान लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया की परिणति है न कि इसका आरंभ . इससे पहले कि इराकी चुनावों का अर्थपूर्ण लाभ उठा सकें उन्हें सद्दाम हुसैन के क्रूरतापूर्ण शासन की आदतों को छोड़कर सिविल समाज की अच्छी आदतों को सीखना होगा. इसके बहुत से रास्ते हैं जैसे स्वयंसेवी संस्थाओं का निर्माण (राजनीतिक दल, लॉबी ,गुट आदि ) , कानून का शासन स्थापित करना , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता स्थापित करना , अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा , संपत्ति के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा एक सार्थक विपक्ष के सिद्धांत को विकसित करना . इन अच्छी आदतों में से चुनाव निकलकर आएगा .मतदान नगरपालिका स्तर से शुरु हो कर राष्ट्रीय स्तर तक जाए . साथ ही विधायिका से शुरु हो कर कार्यपालिका तक जाए . इस प्रक्रिया में समय लगेगा क्योंकि इराक की विभाजित जनता को परस्पर निकट लाना और उनकी दशकों की अधिनायकवादी आदतों को छुड़ाना सरल नहीं है. मैक्सिको दक्षिण अफ्रीका , रुस , चीन के अनुभव बताते हैं कि क्रूरता से लोकतंत्र तक का रास्ता काफी लंबा और उबड़ खाबड़ है . कोई भी कठिन कार्य जल्दबाजी में नहीं किया जा सकता और वह भी किसी विदेशी द्वारा. केवल इराकी जनता ही इस दिशा में प्रगति कर सकती है और वह भी अपने तरीके से अपनी भूलों से सबक लेते हुए .
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